कहा जाता है कि अंग्रेजों ने 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित ज्यादातर दस्तावेज नष्ट कर दिए थे। वीर सावरकर के अपनी पुस्तक “भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम” लिखे जाने तक देश में लोगों की स्मृति में ये एक छोटे मोटे विद्रोह के रूप में ही जाना जाता था। अभी भी कई संदर्भों में इसे गदर, विद्रोह इत्यादि ही लिखा जाता है।
पहले स्वतंत्रता संग्राम में बरनवालों की क्या भूमिका थी? क्या बरनवाल बिल्कुल अछूते थे? 1900 ईस्वी के बाद तो कई महान बरनवाल स्वतंत्रता सेनानी विभूतियों के बारे में हमें पढ़ने को मिलता है, लेकिन उसके पहले क्या?
2. शहर बरन (बुलंदशहर) के मूलनिवासी श्री मेजर अमित बंसल (बरनवाल) जो भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हैं और वर्तमान में Zee ग्रुप में कार्यरत हैं, अपने पूर्वजों की खोज की यात्रा पर निकले, और अबतक 18 पीढ़ियों तक की खोज कर चुके हैं। इस खोज के दौरान रामपुर, लखनऊ इत्यादि के पुस्तकालयों व् सरकारी अभिलेखागारों से सघन खोज कर उन्होंने वकील बाबू रामनारायण, नौरोली का संदर्भ पाया जो उनके पूर्वज थे। वकील बाबू रामनारायण ने सन 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में 1000 सैनिकों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। बिसौली के किले में स्वयं पेशवा नाना साहेब ने इन्हें खान बहादुर / कर्नल की उपाधि दी थी। इन्होनें पहली दो लड़ाईयों में अंग्रेज़ों को कड़ी शिकस्त दी परन्तु इस्लामनगर की तीसरी लड़ाई में सात जून सन 1858 को अंग्रेजों से लोहा लेते समय ये वीरगति को प्राप्त हुए।
3. शहीद वकील बाबू रामनारायण बरनवालों की गौरवशाली परंपरा के आदर्श हैं। राष्ट्र प्रेम और असीम साहस हमारी पहचान है, शहीद वकील बाबू रामनारायण का उदाहरण यह सिद्ध करता है। इसी गौरवशाली परंपरा को हमें ढूंढना है और विस्मृत होने से बचाना है।
4. शहीद वकील बाबू रामनारायण को पूरे बरन वाल समुदाय की तरफ से मैं श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं।
5. ऐसी विभूतियां और भी हैं, हमें सिर्फ उन्हें ढूंढना है। जन्मोत्सव सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं है, ये अपने इतिहास को ढूंढने की एक यात्रा है, अपनी गौरवशाली परंपरा को पहचानने और दुनिया को उसका दर्शन करवाने का एक यज्ञ है।

-अतुल कुमार बरनवाल