चलो आरती का दिया तो जलाएं।
करें आरती युग पुरुष अहिबरन की।।
जलाई थी जिसने जीवन की ज्योति।
प्रकाशित उसी से बरनवाल जाति।।
युगों से जिसे हम भुलाए हुए थे।
करें वंदना युग पुरुष अहिबरन की।।
जन्म भर ना बैठा कभी चैन से जो।
लगा ही रहा जाति के उन्नयन को।।
करें आज अर्पित श्रद्धा सुमन तो।
उसी अहिबरन को, उसी अहिबरन को।।
चलो आरती का दिया तो जलाएं।।
करें आज हम सब शत शत प्रतिज्ञा।
चलेंगे उसी की बताई डगर पे।।
जलाएंगे ज्योति मधुर प्रेम की यों।
घरों में अंधेरा कहीं रह ना जाए।।
चलो आरती का दिया तो जलाएं।।
पताका विजय की फहर कर रहेगी।
अगर संगठन हम बनाए रहेंगे।
सुरभि स्नेह की गर प्रवाहित रही तो।
बरन जाति के पुष्प खिलते रहेंगे।।
चलो आरती का दिया तो जलाएं।।
अरे तुम हृदय को तनिक झांक देखो।
कटीली चुभन है हर एक मन में।
करो यत्न ऐसा हर एक मन में।
ठहरने ना पाए अंधेरा दिलों में।।
चलो आरती का दिया तो जलाएं।।
(1992 में प्रकाशित न्यास निर्देशिका से उद्धृत)