बरन बंधु को बढ़ना है
तो बंधना होगा एक सूत्र में।
अन्यायों से लड़ना है और गौरवशाली बनना है
तो बंधना होगा एक सूत्र में।
बरन* से भागे घाट घाट में, नगर नगर में अब जो हमको थमना है
तो बंधना होगा एक सूत्र में।
नहीं सिवान के चंदा** जैसे मरना है
तो बंधना होगा एक सूत्र में।
नई सदी में, नए गगन में, ऊंचे अब जो उड़ना है
तो बंधना होगा एक सूत्र में।
थाम के डोरी सभी जनों की
और उन्हें भी करने आगे,
बंधना होगा एक सूत्र में।
दुश्वारी और अपन्नता को छोड़ के जो अब,
खुद के द्वंद्व से लड़ के आगे बढ़ना है
तो बंधना होगा एक सूत्र में।
बरन सुता को भी,
अब आगे, जो करना है
तो बंधना होगा एक सूत्र में।
सभी समाज की कुरीतियों को,
करके पीछे, नए समय में चलना है
तो बंधना होगा एक सूत्र में।
तोड़ के अंतर उपजाति का, और स्वर्ण का,
और व्यर्थ के अभिमान का,
बंधना होगा, हम सब को अब एक सूत्र में।
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-अतुल कुमार बरनवाल