बरनवालों में पहला अंतर्जातीय विवाह

बरनवालों में पहला अंतर्जातीय विवाह

वैसे तो पहले भी अंतर्जातीय विवाह हुए थे लेकिन ये धोखे से हुए थे। खुले आम, समुदाय  के गणमान्य  लोगों की उपस्थिति में, खूब गाजे बाजे के साथ, जो समाज में स्वीकार्य भी हो, ऐसा पहला अंतर्जातीय विवाह मुंगेर के राजनीति प्रसाद का 1933 में हुआ था। राजनीति प्रसाद उड़ीसा और बिहार के जमींदार थे और रिश्ते में रायबहादुर दलिपनारायण सिंह के भतीजे थे। इनका विवाह मुजफ्फरनगर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अग्रवाल कन्या हंस कुमारी से हुआ था। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि इस विवाह में दलिपनारायण और बरनवाल समुदाय के कई गणमान्य लोग उपस्थित हुए थे।

अंतर्जातीय विवाह एक गंभीर विषय था। समाज बिल्कुल क्लोज्ड था। बाहर किसी भी प्रकार का संबंध अलाउड नहीं था। पटनी के एक बंधु ने एक चमार लड़की को बरनवाल बता कर एक बरनवाल बंधु को ही बेच दिया था। बाद में पता चलने पर चमार लड़की अपने घर चली गई और वहां से कहीं और। लेकिन इस की सजा के रूप में कन्या क्रय करने वाले बंधु को जाति निकाला दे दिया गया। कृपया ध्यान दें सजा जाति से बाहर शादी करने की थी ना की कन्या क्रय करने की। इसी प्रकार एक सज्जन की धोखे से एक पहले से ब्याही तेली लड़की से शादी कर दी गई। पता चलने पर तेली लड़की अपने पहले पति के पास चली गई। ये शादियां धोखे से हुई थीं फिर भी शादी करने वाले को अंतर्जातीय शादी करने के कारण जाति निकाला दे दिया गया था।

एक मामले में अमृत मोदी, शेखपुरा की लड़की से शादी करने पर भी कुछ लोगों का ऑब्जेक्शन आया था क्योंकि वो मोदी से शादी स्वीकार नहीं कर रहे थे। इतना ही नहीं, 15 आना बरनवालों से भी शादी विवाह का संबंध, खान पान का नाता स्वीकार नहीं था।

वैश्य जातियों यथा अग्रवाल, माहेश्वरी इत्यादि से सम्बन्ध का एक प्रस्ताव 1932 में मुंगेर की एक स्थानीय बैठक में पास किया गया था. हांलाकि मुंगेर में कृतनारायण प्रसाद नाम के विद्यार्थी ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा था कि जब हमारे खुद के समाज के अंदर तमाम तरह के भेद हैं जैसे 15 आना 16 आना भेद इत्यादि तब अग्रवाल और माहेश्वरी से खान पान का सम्बन्ध बढ़ाने की बात करना ठीक नहीं है. मुंगेर के इस अंतर्जातीय विवाह के प्रस्ताव के मुख्य पैरोकार दलीपनारायण सिंह थे. मुंगेर के प्रस्ताव को काशी विद्यार्थी मंडलक ने समर्थन भी समर्थन दिया था. 1932 की महासभा बैठक में इस बात पर चर्चा हुई थी. लेकिन महासभा में अंतर्जातीय विवाह का प्रस्ताव पारित नहीं हुआ बल्की दलीपनारायण सिंह को अग्रवाल और माहेश्वरी जातियों के प्रमुख लोगों से संपर्क करके उनका इस बारे में मंतव्य जानने के लिए कहा गया था.

रायबहादुर दलिपनारायण जो बिहार के MLC रह चुके थे, प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति कहे जा सकते हैं। उन्होंने विधवा विवाह के प्रस्ताव को पास करने में महती भूमिका अदा की थी। देवरिया के महासभा अधिवेशन में रायबहादुर को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वो अग्रवालो और माहेश्वरी समाज के अग्रणी लोगों से पत्र व्यवहार कर के उनसे वैश्य अंतर्जातीय विवाह के बारे में उनके विचार जानें। जिस वक्त यह जिम्मेदारी दी गई उस समय तक दलिपनारायण ने अपने भतीजे राजनीति प्रसाद की शादी अग्रवाल कन्या से पहले ही तय कर दी थी।

राजनीति प्रसाद की शादी के समय दलीप नारायण महासभा अध्यक्ष थे. और उनके कार्यकाल में 5 वर्ष तक महासभा का अधिवेशन नहीं बुलाया गया था. चंद्रिका के सम्पादक बेचूलाल थे जिन पर आरोप था कि वो दलीप नारायण के विरोधी स्वर वाले पत्र और लेख सेंसर कर देते थे. नतीजा यह हुआ कि इस अंतर्जातीय विवाह के बारे में लोग अगर नाराज थे भी तो ये नाराजगी कहीं दिख नहीं पाई, कम से कम चंद्रिका में  तो नहीं ही दिखती है. लेकिन रक्सौल के 1937 के अधिवेशन ने स्थिति बदल दी थी. गणेश प्रसाद गुप्त महासभा अध्यक्ष बन चुके थे और वो दलीप नारायण से सवाल पूछ रहे थे.

इसलिए अंतर्जातीय विवाह का विरोध 1933 में नहीं बल्की बरनवालों की दूसरी अंतर्जातीय शादी में दिखा जो हुई थी 1938 में राजनीति प्रसाद की बहन की गाज़ियाबाद के एक अग्रवाल वर के साथ. राजनीति प्रसाद ने अपनी बहन की अंतर्जातीय विवाह पर सवाल उठाने पर उत्तर दिया कि महासभा 5 वर्ष से अर्थात उनकी खुद की शादी के बाद से कहाँ सोई हुई थी. 1937 के रक्सौल अधिवेशन में रामगढ़वा के गया प्रसाद ने इस मुद्दे  को उठाया तो था लेकिन समयाभाव में इस पर कोई चर्चा नहीं हो पाई थी. यह आश्चर्य की बात है की दलीप नारायण ने राजनीति प्रसाद के विवाह के कुछ समय बाद इस विवाह के कारण राजनीति प्रसाद को जाति से निष्काषित करने का प्रस्ताव भी दिया था. वैसे दलीप नारायण हमेशा से वैश्य जातियों में अंतर्जातीय विवाह के समर्थक रहे थे. हांलाकि उनके व्यवहार में कई बार दोहरापन भी दिखता था, ख़ास कर वेश्या नृत्य केमामले में फिर भी वो आधुनिक विचारों के प्रणेता तो थे ही. शायद उनके इस कृत्य के पीछे कोई स्थानीय राजनीति हो.

राजनीति प्रसाद और उनकी बहन  की शादी में भी सभी लोग उपस्थित थे और क्रमश: रु 51/ और रु 101/ चन्दा भी महासभा  को दिया गया था. राजनीति प्रसाद की बहन की शादी के बाद कई तरह के आरोप लगे. किसी भी आरोप में लेकिन इन शादियों को बुरा बताया गया हो ऐसा नहीं दिखता है, ना ही इस कारण जाति से निष्काषित करने का प्रस्ताव ही दिया गया था. आरोप/आपत्ति  सिर्फ ये थे कि

  • महासभा ने दलिप नारायण को पत्र व्यवहार करने के लिए कहा था, शादी तय करने के लिए नहीं।
  • जब तक महासभा ने अंतर्जातीय विवाह को मान्यता नहीं दे दी थी इस तरह का विवाह करना समाज विरुद्ध था।
  • दलिपनारायण ने कभी भी किसी प्रकार पत्र व्यवहार व्यवहार किया ही नहीं था

इस तरह से नियम विरुद्ध होने के कारण जिस विवाह का बहिष्कार होना चाहिए था उसे पूरे गाजे बाजे के साथ मान्यता दी गई। “समरथ को नहीं दोष गोसाईं.” एक तरफ महासभा/स्थानीय बिरादरी साधारण गरीब परिवारों पर तरह तरह के नियम भंग करने के कारण जाति निकाला करना, आर्थिक दंड देना इत्यादि दंड लगाती थी, वहीं दलिपनारायण/राजनीति प्रसाद के केस में ऐसा कुछ नहीं हुआ।

वैसे आगे चल कर अंतर्जातीय विवाह हर तरह से मान्य हो गए हैं जिसमें महासभा का कोई रोल नहीं है. सामान्य जन की शिक्षा और जरूरतों ने अंतर्जातीय विवाह को अवश्यम्भावी दिया है. इससे किसी को गुरेज होना भी नहीं चाहिए. लेकिन इससे कुछ दूसरी समस्याएं पैदा होती हैं. जैसे विवाद की स्थिति में कोई सामाजिक मंच विवाद के समाधान के लिए नहीं मिलता है. आज भी किसी वैवाहिक विवाद का निबटारा पहले सामाजिक मंच पर ही किया जाता है और इसके असफल होने पर ही पुलिस और कोर्ट में मामला जाता है. कुछ सज्जन यह सवाल भी उठाते हैं कि बरनवाल लड़कियों के गैर बरनवालों से विवाह के बाद उनकी क्या पहचान होगी. मेरा मानना है कि अब हम इतने आगे बढ़ गए हैं कि लड़कियों को मायके पर पूरा अधिकार मिलता है तो उन्हें बरनवाल मानने में ही क्या परेशानी है. यही उचित है.

– अतुल कुमार बरनवाल