गोदावरी देवी(बरनवाल): जाति रत्न

गोदावरी देवी(बरनवाल): जाति रत्न

आज जब हम तo जनक दुलारी देवी का अवतरण दिवस मनाने जा रहे हैं, यह उपयुक्त मौका है जब हम समुदाय की महिला विभूतियों के बारे में भी जानें।

2.यह बताना आवश्यक है कि आज से 100 वर्ष पूर्व का समाज आज के समान नहीं था। समाज में तमाम तरह की कुरीतियां व्याप्त थीं जिनके कारण समाज में महिलाओं की स्थिती गंभीर थी। इसकी कुछ बानगी आपको मेरे लेखों “बरनवाल समुदाय में समाज सुधार” में मिलेगी जो “बरनवालों के इतिहास की एक झलक” पुस्तिका में भी छप चुका है और जिसे आप http://www.maharajaahibaran.com पर भी पढ़ सकते हैं।

3.इस तरह के सामाजिक परिवेश में जहां लड़कियों को पर्दा करना पड़ता था और उनके तमाम मानवीय अधिकार जैसे अस्तित्व में ही नहीं थे, ऐसे में लखीमपुर खीरी की एक महिला का बरनवालों के मंच पर उदय हुआ। 1938 के बेतिया अधिवेशन में उनके तकरीबन 3 घंटे के ओजपूर्ण भाषण ने जैसे लोगों को मंत्र मुग्ध कर दिया था। उनका आगे बढ़ना इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि उन्होंने ये काम तब किया जबकि समाज में विधवाओं की अवस्था बहुत ही दयनीय थी और वो खुद भी बाल विधवा थीं।(20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में बरनवाल समाज की परिस्थिति पर मेरे लेख पढ़ने के लिए http://www.maharajaahibaran.com पर जाएं)।

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4.गोदावरी देवी, का जन्म लखीमपुर खीरी के स्वo लाला रामभरोसे के यहां 16 जनवरी, 1907 को हुआ था। उस समय के समाज की कुरीतियों के कारण मात्र 12 वर्ष की आयु में ये ये बाल विधवा हो गईं।

5.ये ना सिर्फ श्री भारत वर्षीय बरनवाल वैश्य महासभा की प्रथम (और शायद अब तक की अकेली) महिला अध्यक्ष थीं बल्की उन्होंने समुदाय को एक करने में, जोड़ने में अतुलनीय भूमिका अदा की थी। जैसा मैंने मिर्जापुर के अपने वक्तव्य में भी कहा था, कि आज हर जगह जो महिला समितियां चल रही हैं इसका पूरा श्रेय गोदावरी देवी को जाता है।

6.एक सभा में जब महिलाओं के भी भाग लेने की बात हुई तो पुरुषों ने कहा कि अगर महिलाएं खिड़की से भी झांक लें तो वो सभा छोड़ कर चले जायेंगे। ऐसी स्थिति में एक महिला महासभा की अध्यक्ष बनती है। इन्होंने पहली बार महासभा अध्यक्ष के भ्रमण की परंपरा शुरू की थी। इसके पहले महासभा उपदेशकों की नियुक्ति करती थी जो जगह जगह जा कर महासभा और उसके प्रस्तावों का प्रचार करते थे। गोदावरी देवी ने एक सच्चे लीडर की भांति खुद यह काम शुरू किया जो आगे चल कर एक परिपाटी बना।

7.गोदावरी देवी ने विधवा विवाह के प्रस्ताव को समाज में स्वीकार्यता दिलवाने में भी महती भूमिका निभाई थी। 1939 और 1941 में महासभा अधिवेशनों की अध्यक्ष और सभापति बनीं(महिला समिति की नहीं, निखालिश महासभा की)।

8.बरनवाल समुदाय के अलावा भी उनके कई सामाजिक कार्य चलते रहते थे। 1930,1940 और 1942 में उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए कारावास का जीवन बिताना पड़ेगा। 1930 से 1944 तक उन्होंने लखीमपुर खीरी नगर पालिका के सीनियर वाइस चेयरमैन का पद सुधोभित किया। 1939 में ये जिला कांग्रेस कमिटी की मंत्री और 1942 में डिक्टेटर रहीं।

9.मेरा मानना है कि गोदावरी देवी को बरनवाल समुदाय ने आजतक वो सम्मान नहीं दिया जिसकी वो सच्ची हकदार हैं। मेरा मानना है कि जाति रत्न डॉ त्रिवेणी प्रसाद के बाद समाज को एक करने, उसकी कुरीतियों को दूर करने में अगर किसी की सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका है तो वो गोदावरी देवी ही हैं।

10.सभी प्रकार की सामाजिक चुनौतियों के बीच प्रगतिशील विचारों के साथ समाज को एकजुट करने और प्रगति के पथ पर आगे करने के लिए पूरा बरनवाल समुदाय हमेशा उनका ऋणी रहेगा।

11.गोदावरी देवी के इस योगदान के लिए उन्हें जाति रत्न की उपाधि से सम्मानित करने का यह सही समय है। यह ना सिर्फ गोदावरी देवी का सम्मान है बल्की उन हजारों स्त्रियों के प्रति श्रद्धांजलि है जिन्होंने समाज की कुरीतियों यथा कन्या क्रय विक्रय, विधवा उत्पीड़न, बाल विवाह, बेमेल विवाह का दंश झेल है। यह सही समय है जब हम समाज में स्त्रियों को उनका यथोचित स्थान और अधिकार दें।

12.मेरा श्री भारतवर्षीय बरनवाल वैश्य महासभा, सभी सभा/समितियों और सभी बरन वालों से अनुरोध है कि गोदावरी देवी को जाति रत्न के सम्मान से सम्मानित करें। यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजली होगी।

-अतुल कुमार बरनवाल